सपनों को जीनें की नहीं अस्तित्व को बचाने की कहानी है ‘Pink’ और ‘Parched’

Pink and Parched storyनाइट शिफ्ट का बोझ भरा था सिर में हल्का दर्द भी हो रहा था लेकिन, अब और भी भयंकर हो गया, खुपड़िया झन्ना गई। कल देखे थे Pink और आज देख ली Parched, कल वाली का भूत अभी उतरा भी नहीं था कि इसने और चढ़ा दिया। जैसे-तैसे आंखों को अपने वश में करके फिल्म पूरी की, अब जब देख ली तो दिल नहीं माना बिना कुछ लिखे सोने को।

Pink and Parched story
Pink and Parched story

Parched फिल्म का एक सीन
Pink को देखने के बाद आप सोचने पर मजबूर हो जाते हो लेकिन Parched को देखने पर कुछ सोच ही नही आता। दिमाग काम करना बंद कर देता है। Pink में लड़कियों को इंसाफ दिलाकर समाज को बैलेंस कर दिया लेकिन Parched को देखने के बाद भयंकर वाली घृणा आती है, अब घृणा किससे आती है मैं अभी तक तय नहीं कर पाया। कितना बदलोगे रे, किसे बदलोगे, कहां तक बदलोगे। कुछ नहीं बदलेगा? जिस किसी विद्वान से पूछो कि भाई कब तक सब ठीक हो जाएगा, हर कोई यही कहता है शुरुआत हो चुकी है। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।
यह धीरे-धीरे ने बहुत गंध मचा रखी है। खैर, लीना यादव आपको सैल्यूट है, तनिष्ठा चटर्जी, राधिका आप्टे सुरवीन चावला और हां अपना परमानेंट रूममेट्स वाला मिकेश भइया (सुमीत व्यास), कसम से ऑस्कर कम है आपकी एक्टिंग के लिए (मेरे अनुसार) विशेष तौर से राधिका आप्टे। कोई रिव्यू नहीं दे रहा हूं, हां मन किया कुछ लिखने को तो लिख रहा हूं। मुझे कहानी लिखना नही आता उसके लिए तो आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। शर्म आती है, गूगल पर Parched सर्च करने पर आपको फिल्म की जानकारी देते हुए कम रिजल्ट मिलेंगे लेकिन राधिका आप्टे का सेक्स सीन लीक होने वाली खबर के ज्यादा रिजल्ट मिलेंगे।

Parched को देखने के बाद कुछ लोग तो उसे सेमी पोर्न भी कह सकते हैं क्योंकि राधिका आप्टे और सुरवीन चावला के कुछ न्यूड सीन हैं। लेकिन वो न्यूड सीन किसी और के नंगेपन को दर्शा रहे हैं। Pink में बच्चन साहब की खामोशी हजारों शब्द वयां कर देती है जिसका फिल्म में असर भी होता है लेकिन, यहां तो बोलकर भी कुछ नहीं हो रहा। NDTV के YouthForChange प्रोग्राम में बच्चन साबह से पूछा गया कि कैसे बदलेगा तो जबाब में उन्होंने भी वही कह दिया जो सभी कहते हैं, धीरे-धीरे समाज में बदलाव आ रहा है।

बच्चन साहब रवीश कुमार के सवालों के जबाब थोड़े अजीब तरह से दे रहे थे हो सकता है वो रवीश कुमार को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रसित हों खैर, Pink के बारे में फेसबुक पर तब से पढ़ रहा हूं जब से वो रिलीज हुई है। इसलिए उसके बारे में लिखने की कोई जरूरत नही है। फिल्म बहुत ही शानदार है जरूर देखें। Parched अभी इंडिया में ऑफिशियली रिलीज नहीं हुई है। लेकिन ऑनलाइन कई वेबसाइट्स हैं जो HD में फिल्म दिखा रही हैं। फिल्म वैसे तो पूरे गांव की औरतों की कहानी दर्शाती है लेकिन तीन या कहें चार मुख्य हैं। वो कोई बड़े सपने नही देखती, उनमें से एक तो बेचारी बच्चा चाहती है लेकिन उसे बांझ बताकर सब कोसते रहते हैं जबकि कमी उसके आदमी में होती है।

दूसरी का पति उसकी जवानी में उसे टॉर्चर कर कर के मर गया अब एक जवान हो रहा लड़का है जो बाप के नक्शेकदम पर निकल चुका है। तीसरी नाचने गाने वाली जो थोड़े खुले विचारों वाली भी है। मर्दों के बारे इन तीनों को बातें करना अच्छा लगता है, सेक्स के बारे में भी। एक बार गुस्से में आकर बिजली(सुरवीन चावला) कहती है, ‘यह गाली भी मर्द लोगों ने ही बनाई होगी, साला सब गाली हमारे लिए ही है। जैसे@#$%^&*&**&^%$# चल आज से हम भी इन्हें गाली देंगे, फादर&*& बेटा$%^, चाचा$%’ थोड़ा हास्यास्पद सीन बनाया गया है लेकिन सोचने पर तो मजबूर करता है। हम भी कभी नही सुने हैं किसी पुरुष के लिए गालियां।

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Pink फिल्म का पोस्टर

हां पिंक के बारे में इतना जरूर कहना चाहूंगा कि जिस तरह से बच्चन साहब जिरह करते हैं कोर्ट में वैसे कहीं नही होती। कौन सा ऐसा कोर्ट है जो तु्म्हारी भावनाओं से भरी अपील पर ध्यान देता है। वो तो फिल्म थी तो आपने अपनी एक्टिंग के दम पर लड़कियों को बचा दिया लेकिन, वास्तविकता में उन्हें कोई नहीं छुटा सकता था। खुद जज साहब भी चाहकर कुछ नहीं कर सकते थे। लड़कियों की जिंदगी पर तो वहीं ब्रेक लग गया था जहां उन्होंने हिम्मत करके पुलिस केस किया।
हमारी न्याय व्यवस्था पर हसने के लिए Pink फिल्म में एक बड़ा ही रोचक सीन है। केस की सुनवाई के वक्त जब महिला एसएचओ को कटघरे में बुलाया जाता है, बच्चन साहब उनसे सवाल पूछते हैं कि आप तो शादी में गईं थी फिर आपने इतनी दूरसे आकर रिपोर्ट कैसे लिख दी। फरीदाबाद सेक्टर 7 से सूरजकुंड पुलिस चौकी 22 किमी की दूरी को सिर्फ 10 मिनट में आपने कैसे पूरा कर दिया। मतलब 132 किमी प्रति घंटा की स्पीड से गाड़ी चलाकर आप रिपोर्ट लिखने आ गईं। जबकि नॉर्मल 42 मिनट लगते हैं इसे तय करने में (ऐसा फिल्म में बताया गया है।)
मेरे हिसाब से बहस को यहीं पर समाप्त हो जाना चाहिए था। महिला पुलिस से सच उगलवाया जाना चाहिए था। क्योंकि वो झूठ जज साहब को भी दिख रहा था और हमें भी। फिर भी कोर्ट की आगे की कार्रवाई होती है। बाकी फिल्म में जो दिखाया गया वो 99.99 प्रतिशत सच्चाई है। यकीन न हो तो देख लो, और हां.. जो कोई भी Parched देखे प्लीज लिखना जरूर.. एक अच्छे रिव्यू की उम्मीद लगाए बैठा हूं। क्योंकि मुझे रिव्यू पढ़ना बहुत पसंद है। खासतौर पर फेमिनिज्म वाली फिल्मों के।……….बहुत कुछ लिखने का मन कर रहा है लेकिन नीद लगी है जोर की सोने दो.. शायद सब भूल जाऊं…………………………………………
(संपादित नही किया है, भाषाई त्रुटियां हो सकती हैं..)

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